भला ऐसा कोई इंसान है?
जिसको सब चाहें, भला ऐसा कोई इंसान है?
हर किसी पर इक न इक छोटा-बड़ा इल्ज़ाम है!
जीतना या हार जाना दो अलग चीज़ें नहीं
जीत, हारी बाज़ियों का आख़िरी अंजाम है
हर हक़ीक़त का कोई मंजर नहीं होता मगर
हर हक़ीक़त ख़ुद-बा-ख़ुद इक सिलसिले का नाम है
लोग ख़्वाहिश के लिए क्या-क्या नहीं करते जनाब?
इश्क़ तो दुनिया में यूँ ही खामखाँ बदनाम है!
आदमी को चाहिए – लत से ज़रा दूरी रखे
आदतों को पालने में भी बड़ा नुकसान है
चाहतें, फ़िर मस’अले, फ़िर रंजिशें, फ़िर दूरियाँ
खेलना आ जाए तो ये ज़िंदगी आसान है
(मस’अले: problems)