तो... मैं बना!

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बदन का ज़ख्म रूह तक उतर गया तो मैं बना!
हरेक ख़्वाब टूट के बिखर गया, तो मैं बना!

हमारा क्या वज़ूद था जब तक भरोसे पर जिए
शदीद वादे करके वो मुकर गया, तो मैं बना!

क्योंकर किसी के वास्ते राहें सहल होने लगीं?
जब जलके मुश्किलात में निखर गया, तो मैं बना!

हालात का सबब कि – सारे खौफ़ रुख़सत हो गए,
फ़िर उसके बाद मौत का भी डर गया, तो मैं बना!

मुझसे उम्मीद-ए-फ़तह है? शायद तुम्हें ख़बर नहीं!
वक़्त-ए-शिकस्त इक जगह ठहर गया, तो मैं बना!

अब मेरे दरमियान कोई दोस्त न दुश्मन कोई!
जब इस ज़ेहन में वो सिफ़र उतर गया, तो मैं बना!


(शदीद: intense, सहल: easy, सिफ़र: void/god)

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Ravi Prakash Tripathi
Researcher & Cybersecurity Practitioner

A Ph.D. fellow working on “Avatar Security in Metaverse” who could often be found somewhere messing up with bugs & vulnerabilities, contributing to open source or writing poems.

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